आत्म ज्ञान

आत्म ज्ञान को जानना ही सच्ची पहचान है

आज मानव अपने शरीर के नकली रूप को असली रूप मान बैठा है। जबकि यह उसका असली स्वरूप नहीं है। हम शरीर को चलाने वाली परमात्मा की अंशी “आत्मा” रुपी :  हैं जैसे एक परिवार में कर्इ सदस्य रहते हैं वे एक दूसरे को शरीर से पहचानते हैं आत्म से नहीं। सारे विश्व के मानव में यही भ्रान्ति  हो रही है जबकि आत्मा की पहचान ही अपनी सच्ची पहचान है यानि यथार्थ स्वरूप को जानना ही अपने  आप की सच्ची पहचान है  आत्म ज्ञान की प्राप्ति  संत समागम से होती है। आत्म ज्ञान के बिना शांति संभव नहीं  नहीं है। जिस प्रकार सूर्य सबके लिए एक है उसी प्रकार यह ज्ञान सम्पूर्ण विश्व मानव के लिए एक है। आप जो यह जाति-पांति का भेदभाव देख रहे हैं, यह सब शरीर सम्बन्धी है। जबकि हम सभी आत्माएँ एक ही “परमात्मा” रूपी  “रू” की अंशी आत्मा रूपी “रू” हैं। यह ज्ञान सभी विश्व धर्म ग्रन्थों में प्रमाणित है जिसे ब्रह्म सूत्र  में ब्रह्म ज्योति  गीता में “दिव्या ज्योति ” गुरू ग्रंथ साहिब में “चांदना” कुरान में खुदा का नूर तथा बाइबिल में “डिवार्इन लार्इट” आदि-आदि कहा गया है।

आज के युग में “तत्वदर्शी महात्मा श्री परम चेतनानन्द जी” उस आत्म ज्ञान का प्रत्यक्ष बोध कराते आ रहे हैं। महात्मा जी सच्चे एवं पूर्ण आध्यात्मिक  सन्त हैं तथा सदैव “ब्रह्म “में रमण करते हैं। जब श्रद्धावान जिज्ञासु महात्मा जी की आज्ञा के अनुसार अध्यात्म सत्संग’ सुनकर आत्म ज्ञान जानने की विनम्रता पूर्वक प्रार्थना करता है तो दिव्य दृष्टि का जो ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन  को दिया। रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानन्द को दिया उसी ज्ञान का महात्मा जी जिज्ञासु को प्रत्यक्ष बोध कराते हैं जिससे साधक अपने अन्दर शब्दब्रह्म की आवाज के साथ मन सुरति जोड़कर अजपा जाप का सुमिरण करता है ब्रह्म प्रकाश का दर्शन करता है जो परमात्मा का वास्तविक स्वरूप हैं ब्रह्मनाद सुनता है तथा खेचरी मुद्रा में अमृत पान करता है तब वह मोह निद्रा से जागकर परम आनन्द का अनुभव करने लगता है।
सत्संग] सेवा व योग साधन करने से साधक में जड़ व चेतन में लगी ग्रंथियाँ खुलने लगती हैं। वह पल-पल में होने वाले सुख-दु:ख के बंधन से रहित हो जाता है तथा उसका आत्म विश्वास दृढ़ हो जाता है। फिर साधक के भौतिक एवं अध्यात्म दोनों जीवन व्यवfLथत हो जाते हैं वह भंयकर मृत्यु रोग से निर्भय हो जाता है। श्रद्धावान जिज्ञासु सत्संग सुनकर महात्मा जी के सांदिध्य में आकर “आत्म ज्ञान” प्राप्त करें तभी आपके सब संशयों का समाधान होगा क्योंकि मनुष्य जन्म में ही आत्म ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है।

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