भौतिक गुरु एवं अध्यात्म गुरु

‘‘भौतिक गुरु एवं अध्यात्म गुरु’’

आज मैं प्रेमी सज्जनों को भौतिक गुरु व अध्यात्म गुरु की जानकारी दे रहा हूॅं। इस बात को भली प्रकार समझ लेना चाहिये कि भौतिक गुरु दो आंखों से देखने वाले होते हैं,और अध्यात्म गुरु अनंत आंखों से देखने वाला है। अनंत ज्ञान का खजाना भी अध्यात्म ‘‘गुरु’’के पास ही है। अन्दर की ज्ञान की आंख अन्दर के गुरु ही खोलते हंै,और अधर्म क्षेत्र से जीवात्मा को रुहानी गुरु ही धर्म क्षेत्र में पहुंचाकर धर्मात्मा बनाते हैं,मोह अंधकार को मिटाकर जीवात्मा ब्रह्म सूर्य के प्रकाष में पहुंचकर प्रकाषित हो जाती है। फिर ब्रह्म का अमृत पाकर मृत्यु रोग समाप्त हो जाता और जीवात्मा सनातन सुख-षांति को प्राप्त करती हैं मानव के जीवन में जन्म-जन्मान्तरों से दिमागी रोग होने से सूझ-बूझ सुन्न हो जाती है। जिस कारण विचार संकीर्ण होकर मानव विवेकहीन हो जाता है। ब्रह्म ज्ञान से निर्दयी जीवात्मा दयावान बन जाती है स्वार्थी जीवन निस्वार्थ बन जाता है। इस ज्ञान को अविनाषी गुरु ही दे सकते हैं शरीरी गुरु अपने षिष्य को प्रकृति से पार नहीं ले जा सकते है। अविनाषी रुहानी गुरु मोह अंधकार को मिटा सकते हैं तभी जीवात्मा धर्मात्मा बनती हैं। रुहानी गुरु सबके अन्दर हैं उनके नजरों में सब जीव-प्राणी है परन्तु वो किसी के नजरो में नहीं है।

तत्वदर्षी संतों से रुहानी गुरु का ज्ञान अपने अन्दर ही मिलता है, जब गुरु ही सेवक की पंचदृष्टि, दिव्य दृष्टि और कृपा दृष्टि खोल देते हैं तब सेवक रुहानी गुरु का अनुभव अपने अन्दर ही करता है रुहानी गुरु की कृपा के बिना रुहानी दर्षन संभव नहीं है। जब संत किसी जिज्ञासु को बाहर से ज्ञान साधन बताते हैं तब भीतर से गुरू ही जिज्ञासु के लिए ज्ञान का भण्डार खोल देते हैं जैसे एक छोटे तालाब के बीच में मिटटी की चटटान है और दूसरी तरफ समुद्र है तो समुद्र का पानी निरंतर छोटे तालाबों में गिरता रहता है। चाहे तालाब के पानी को कितने ट्यूबवैल लगाकर खेतों में ले जाओ फिर भी पानी कम नहीं होता है क्योंकि तालाब का स्रोत समुद्र से है इसलिए जितनी भी जीवात्माओं को अविनाषी गुरू का ज्ञान मिल जाता है उनके अन्दर ब्रह्म सागर से ब्रह्म स्रोत मिल जाता है यह ज्ञान अथाह है। शरीर को अविनाषी गुरू बताना भारी भूल है।

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