सी.आई.डी. को सीख

सी.आई.डी. को सीख

एक दिन मैं भ्रमण करते-करते महेन्द्र नगर, नेपाल चला गया। एक पुलिस वाले ने कस्टम में मेरे बैग को चैक करके दूर फेंक दिया। बोले कि ये महात्मा हिन्दुस्तान का है। मैंने जब उनमें यह भेदभाव देखा तो उनसे कहा कि तुम्हें सी-आई-डी-की नाॅलेज नहीं है। इससे वे मेरे साथ बहुत नाराजगी से पेष हुए। मैंने उन्हें कहा कि मैं रतन बहादुर रावल कस्टम अधिकारी के घर पर जा रहा हूॅं और आपका समाधान शाम सत्संग में करुंगा,आप सत्संग में आना। वे सत्संग में पहुंचे व उन्हांेने सबसे पहले सी-आई-डी-की ट्रेनिंग के बारे में ही पूछा। मैंने उन्हें बताया कि ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि पुलिस को देखते ही चोर का चेहरा फीका पड़ जाता है और सुल्फा पीने वाले के होंठ काले हो जाते हैं। अफीम खाने वाले के दांत काले हो जाते हैं व शराब पीने वालों के आंख तेज हो जाते हैं। ये सब बुरे अमलों का प्रभाव अमली के चेहरे पर दिखाई देता है व सी-आई-डी-वाला समझ जाता है। साधन भजन करने वाले साधु के ललाट पर ब्रह्म नाम की चमक दिखाई देती है। तुम बताओ कि मैं किसी प्रकार का अमली हूॅं या महात्मा हूॅं ? तो वे चुप रह गये व अपनी गलती को स्वीकार करने लगे। मैंने उन्हें कहा कि जैसे राजा की शोभा सत्यवादी कर्मचारी से होती है व माता-पिता की शोभा सुपुत्र से होती है और गुरू की शोभा सत्यवादी षिष्य से होती है। जो आप में यह भेदभाव नजर आ रहा है,उसका समाधान करता हूॅं। जैसे कि काली नदी हिन्दुस्तान और नेपाल के बीच में बह रही है। नेपाल वाले कहते हैं कि यह नदी हमारी है व हिन्दुस्तान वाले कहते हैं,कि यह नदी हमारी है। नदी नेपाल वाले को भी और अन्य सभी पषु-पक्षियों को भी स्नान कराती है और उनकी प्यास बुझाती है,उसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता है। नदी से पूछा जाय कि तुम हिन्दुस्तान की हो या फिर नेपाल की हो। गंगा जी तो पर्वत से निकलकर सागर में जाकर मिलेगी। इस मार्ग में न जाने कितने पापी मिले कितने गांव व षहरों को होती हुई समदर्षी गंगा सागर में जा समाती है। इसी प्रकार संत महात्मा भी समदर्षी होते हैं। वे सारे संसार के मनुष्यों को ज्ञान गंगा में स्नान कराते हैं और उनके मन,बुद्धि के पाप रूपी मैले को धोकर उन्हें पवित्र बनाते हैं।

साधु का ज्ञान सारे विष्व समुदाय के लिए एक होता है। इसमें कोई भी मजहबी भेदभाव नहीं होता है। उस सत्संग में महेन्द्र नगर,नेपाल के कई अध्यापक व अधिकारी लोग बैठे थे। वे सत्संग सुनकर काफी प्रभावित हुए फिर उन्होंने अपने हाई स्कूल के प्रांगण में सत्संग का आयोजन कराया व वहाॅं के बच्चों बूढ़ों ने सत्संग सुना। फिर कई श्रद्धावान जिज्ञासुओं ने ज्ञान भी प्राप्त किया। वैसे तो मैं अध्यात्म ज्ञान के साधन को सन् 1962 से करता आ रहा हूॅं व ज्ञान संदेष को मानव समाज में पहुंचाने का कार्य अभी तक पूर्ण रूप से चल रहा है। इस कार्यकाल में अनेक घटनायें घटी हैं जिसमें गुरू महाराज ने इन सब समस्याओं का समाधान करते हुए इस कार्य में भरपूर सहयोग दिया है। उसी घटनाओं में से मैं कुछ खास-खास घटनाओं को पाठकगणों के सम्मुख पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूॅं। जिसे जानकर पाठकगण भी इस अविनाषी ज्ञान को प्राप्त करें व अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ति का मार्ग प्रषस्त करें।

इस सत्संग की बात को सुनकर अंचलाधीष जी ने अपने मंत्री को पूछताछ के लिए मेरे पास भेजा। मंत्री जी ने मुझसे कहा कि आप आंख नहीं देखते हैं तो यह चष्मा लगाने की क्या आवष्यकता है ? वहां पर बहुंत सारे लोग बैठे थे और मैंने कहा कि जब हवा में धूल उड़कर आती है,तो यह चष्मा आंख का बचाव करता है। मंत्री ने और प्रष्न किया कि चष्मा और क्या काम करता है ? जब तेज धूप लगती है तो चष्मा गर्मी को रोकता है और आंख की सुरक्षा करता है। मंत्री जी ने और प्रष्न किया कि चष्मा से और क्या लाभ है ? मैंने कहा कि कहीं रास्ते में झाड़-झंकर आंखों में लगने से बचाव करता है। मंत्री जी ने फिर पूछा कि ये जो आपने सिर पर कपड़ा बांध रखा है यह क्या काम करता है ? मैंने कहा कि रास्ते में चलने पर सिर में धूल पड़ जाता है इसलिए सिर को बांध कर रखता हूॅं। मंत्री जी ने कहा कि सभी साधु बड़े-बड़े जटारखते हैं और आपने सिर के सारे बाल उतार रखे हैं ? मैंने कहा कि जब योग साधन करके योग अग्नि ब्रह्माण्ड में चढ़ जाती है और सिर में बड़ी गर्मी से बेचैनी हो जाती है। इसलिए सिर के बालों को उस्तरे से साफ कर देता हूॅं,तो योग की गर्मी ब्रह्माण्ड से निकलती रहती है और शांति रहती है,इसलिए रोज बालों को उतारना पड़ता है। मंत्री जी ने फिर पूछा कि क्या योग साधन जटा वाले साधु नहीं करते हैं ? यह तो उनहीं साधु से पूछा जाय। मंत्री जी उठकर नाराज होकर चले गये,घर पहुंचते-पहुंचते उनकी आंख में सूजन आ गई,बहुत पीड़ा होने लगी कई दवा डाॅक्टरों से लेकर लगाई परन्तु पीड़ा कम नहीं हुई मंत्री जी चार बजे सुबह उठकर उस स्कूल में पहुंच गये जहां पर मैं रहता था और मास्टर जी से मंत्री जी बात करने लगे। मैं साधन में बैठे-बैठे उनकी बात भी सुन रहा था। मास्टर जी कह रहे थे कि महात्मा जी साधन में बैठे हैं,इतने में मैंने मास्टर जी को बोला कि कौन आये है? उन्होंने कहा कि मंत्री जी के आंख में दर्द हो गया है वे आपको मिलना चाहते हैं। मैं बाहर आ गया और मंत्री जी ने कहा कि मैंने आपसे तर्क-कुतर्क किया इसलिए मेरे आंख में दर्द हो गया बड़ी पीड़ा हो रही है मेरी गलती क्षमा कर दो। मैंने कहा कि एक फूल स्टेज पर चढ़ा दे ठीक हो जाओगे। उसके पष्चात आंखों की पीड़ा कम हो गई और फिर मंत्री जी चले गये।

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