महात्माजी का जीवन परिचय

महात्मा जी का जीवन परिचय

परिचय का जीवन में बड़ा महत्व है। आज शरीरी परिचय से ही मानव एक दूसरे को पहचानता है। यद्यपि यह परिचय वास्तविक नहीं है परन्तु मेरा भी भौतिक शरीर है इसलिए मेरा भी भौतिक परिचय है। वास्तविक परिचय अध्यात्मिक होता है जिससे मानव स्वयं (आत्मा) की पहचान करता है मुझे अध्यात्म ज्ञान की प्राप्त हुई है जिससे मुझे अपने वास्तविक स्वरूप की पहचान हुई। अतः मेरा अध्यात्मिक परिचय भी है।

भौतिक परिचय

मेरा भौतिक जन्म उत्तराखण्ड देवभूमि में ग्राम-गहणा पट्टी-पल्ला नया, पोस्ट-कुन्हिल,जिला-अल्मोड़ा में एक सूर्यवंषी परिवार में 8 नवम्बर सन्1930 को हुआ था। मेरे वंष में नौ पीढियों से इकलौती संतान रही है तथा मैं भी अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। मेरा बचपन का नाम प्रताप सिंह बिष्ट तथा पिता का नाम मोती सिंह विष्ट था। मेरे पिता एक जमींदार थे। मेरी माता का नाम सदुली देवी था। मैंने निकटवर्ती विद्यालय में प्राथमिक षिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रवेष लिया। मेरा सम्पूर्ण वाल्यकाल अत्यन्त लाड़ प्यार में व्यतीत हुआ। मैं घर के कार्यों की अपेक्षा सामाजिक कार्य में अधिक रूचि लेता था। बारह वर्ष की अवस्था होने पर मैंने सन् 1942 से लेकर सन् 1947 तक भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया जिस कारण से मैं अधिक लिख पढ़ नहीं सका। मेरे माता पिता ने मुझे बताया कि तेरा जन्म प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में हुआ था इस दिन वर्षा ने मौसम को सुहावना बना दिया था।

अध्यात्मिक परिचय

एक दिन जब मैं संसारी घर में ही सोया हुआ था तो गुरू ने रात को दिन में बदल दिया। जब मैं उठा तो मुझे लगा कि बहुत देर हो गई है,बाहर प्रकाष हो रहा है। मेरे देखने में आया कि एक महात्मा मेंरे जीवन के आंगन में थे और मैं समझ रहा था कि मैं बाहर आंगन में हूॅं। मैंने उनको हाथ जोड़कर दण्डवत् प्रणाम किया तो वे बोले कि हमें बच्चों को अध्यात्म विद्या पढ़ाने के लिए एक अध्यापक की आवष्यकता है उसके लिए तुम योग्य है। मैंने उनसे कहा कि मेंरी आंखों में रोषनी नहीं है और मैं पढ़ा लिखा भी नहीं हूॅं। यह सुनकर उन्हांेने कहा कि हमें जिस विद्या का अध्यापक चाहिए उसके लिए भौतिक आंख और पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है वह तो अन्दर से उपजने वाली विद्या है। इस घटना ने मेरे जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया संसारी कार्यों से मन उबने लगा हृदय में वैराग्य के बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगे।

भजन

घर से चला एक अंधा, साथ में गुरूवर बंदा।
टिकट कटा कर हाथ में देवे, सुन ले भारत जनता।।
बाहर तो कुछ दीखत नाही, अन्दर सूरज चन्दा।
ज्ञान ध्यान में मगन हुए, तब करने लगे सत्संगा।।
उत्तराखण्ड की देवभूमि में, प्रकटे संत अनंता।
सतयुग,त्रेता,द्वापर,और कलियुग के अन्ता।।
योग सफल गुरूवर ने कीन्हा, कट गया यम का फन्दा।।
ज्ञान की ज्योति जलाने लग गये, परमचेतनानन्दा।।

भारत की महानता का परिचय

मेरा प्यारा भारत देष अध्यात्म ज्ञान के कारण पूरे विष्व में प्रसिद्ध है यह देष अध्यात्म सम्पत्ति के कारण सभी धनियों का भी धनी है। इस देष में अध्यात्म ज्ञान का बोध कराने वाले तत्वदर्षी संत हर युग में रहते हैं। जो व्यक्ति इन संतों के माध्यम से अध्यात्म ज्ञान को प्राप्त करता है उसके संकीर्ण विचार पूरी तरह बदल कर पवित्र हो जाते हैं। इस ज्ञान से मानव के अन्दर एक पवित्र विवेक उपजता है जिससे वह सत्य-असत्य का निर्णय करने में समर्थ हो जाता है।

भारत देष अध्यात्म ज्ञान के कारण ही विष्व गुरू कहलाया। जब तक मानव को अध्यात्म विद्या का बोध नहीं होता है तब तक वह मन,बुद्धि की सीमाओं में सीमित रहता है,जब उसे किसी तत्वदर्षी संत के माध्यम से अध्यात्म विद्या का बोध हो जाता है तो उसकी ज्ञान दृष्टि खुल जाती है। उसके अन्दर ब्रह्मसूर्य का प्रकाष फैल जाता है और उसके अन्दर अनहद ध्वनियाॅं बजने लगती है। वह सकाम,निष्काम कर्म के भेद को समझ जाता है इसलिए सुमिरण,साधन में लग जाता है। ब्रह्मसूर्य का उदय होने से उसकी मोह रूपी रात्रि समाप्त हो जाती है तथा ज्ञान का सबेरा हो जाता है जिससे वह अपने यथार्थ स्वरूप को देख लेता है। आज भी भारत के नागरिक में अध्यात्म ज्ञान की तरंग दिखाई देती है मेरा सभी देषवासियों से आग्रह है कि वे ‘‘चेतन योग आश्रम’’ सैक्टर-11,रोहिणी दिल्ली-85 में रविवार के दिन 2 बजे सत्संग सुनकर ज्ञान प्राप्त करें और अपने मानव जीवन को सफल बनावें।

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