तत्वदर्शी महात्मा श्री परमचेतनानन्द जी के आध्यात्मिक अनुभव

मैं विगत 55 वर्षों से योग साधनारत रहकर जिज्ञासुओं को अध्यात्म ज्ञान का प्रत्यक्ष बोध करा रहा हूँ। इस समय मेरी आयु लग भग 88 वर्ष है। मैं प्रतिदिन प्रातः 1 बजे से उठकर लगा तार 4 घंटे योग साधन करता जिससे मुझे अनेक अध्यात्मिक अनुभव होते हैं। जब असंख्य भोग योनियों का भ्रमण करके जीवात्मा मनु”य कर्म प्रधान योनि में आती है तब वह अधर्मी जीवात्मा तत्वदर्शी सन्त का सत्संग सुनकर रूहानी गुरू की कृपा से ज्ञान द्वारा धर्मात्मा बनती है। परमात्मा की ‘रू’ही ज्ञान है और परमात्मा की आवाज ‘ज्ञेय’है जो सबके स्वर में है। परमात्मा की इस आवाज से ही सभी जीव प्राणियों के मुख वाणी में अनन्त आवाजें आ रही है हम सभी परमात्मा ‘रू’की अंशी आत्मा रूपी ‘‘रू’हैं। आत्मा रूपी ‘रू’ने ही सभी प्राणियों के मुख मंडल को शुशोभित कर रखा है। ‘शरीर की रचना होने पर भी रूहानी ‘रू’के बिना ‘शरीर में कोई हलचल नही होती है आंखों में नजर,कानों में सुनने की ‘शक्ति ‘रू’का अस्पर्श होने पर ही आती है। मस्ति”क में पवित्र विवेक और सूझ बूझ‘रू’से ही पैदा होती है।
हमारा मन भी एक बिन पंखों का पक्षी है। यह अज्ञानी मन अधर्म क्षेत्र संसार में अज्ञानमय जीवन में पूरी सृस्टि में पल-पल भोगों के लि, उड़ता रहता है और अनेक प्रकार के आ’चर्यजनक सपने देखता है जब इसे सन्त समागम से अविना’अविनाशी रूहानी गुरू का ज्ञान हो जाता है तब इसकी ज्ञान दृष्टि खुल जाती है फिर वही पि.डी मन ज्ञान-वैराग्य के पंखों से उड़कर ब्रह्म में रमण करता हुआ ब्रह्माण्डी मन बन जाता है और वह अलौकिक धर्म क्षेत्र में अनन्त दिव्य ‘शक्तियों का अनुभव करता हुआ दया, निस्वार्थ प्रेम और अमृत को प्राप्त करता है जिन्हें प्राप्त कर निर्दयी मन दयावान तथा स्वार्थी मन निस्वार्थी , एवं नि पाप हो जाता है और अमृत पाकर मृत्यु रोग को समाप्त करता है। मन को धर्म क्षेत्र और अधर्म क्षेत्र का ज्ञान‘रू’के द्वारा ही होता है इस प्रकार जो मन अज्ञानमय जीवन में आस्चर्यजनक सपने देखता था और भोगो के लिए एक पल में कहीं से कहीं उड़ता था वही मन ज्ञान होने पर धर्म क्षेत्र में ज्ञान-वैराग्य के पंखों से उड़कर ब्रह्माण्ड में सूक्षम से अति सूक्षम अनन्त ‘शक्तियों की खोज करता है और शुरू से प्रार्थना करता है कि मुझे धर्म क्षेत्र एवं अधर्म क्षेत्र दोनो का ज्ञान हो गया है मैने जड़ चेतन की रचना भी देख ली है परन्तु आपका रूहानी द्वारा ज्ञान अभी तक नही हुआ है कृपा करके मुझे द्वारा ज्ञान का अनुभव दीजिये। गुरू ने अनुभव दिया कि तेरे नयन नजर का सरोवर है। ये बाहरी दो आंखे लौकिक नशवर संसार अर्थात अधर्म क्षेत्र को देखने की है। और दिव्य दृष्टि,ज्ञान दृष्टि अलौकिक धर्म क्षेत्र को देखने की हैं तथा कृपा दृष्टि पारलौकिक अर्थात रूहानी क्षेत्र को देखने की है। मेरे जीवन में , एसे अनेक आध्यात्मिक अनुभव हुये जिनका कोई प्रमाण भी नही दिया जा सकता है। वास्तव में अनुभवों का कोई प्रमाण नही होता है कहा गया है कि प्रत्यक्षे किम् प्रमाणम्।

निवेदक
निर्मल सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *